यज्ञफल के प्रभाव से रानीयों ने पुत्रों को जन्म दिया
(चौपाई)
तबहिं रायँ प्रिय नारि बोलाईं । कौसल्यादि तहाँ चलि आई ॥
अर्ध भाग कौसल्याहि दीन्हा । उभय भाग आधे कर कीन्हा ॥१॥
कैकेई कहँ नृप सो दयऊ । रह्यो सो उभय भाग पुनि भयऊ ॥
कौसल्या कैकेई हाथ धरि । दीन्ह सुमित्रहि मन प्रसन्न करि ॥२॥
एहि बिधि गर्भसहित सब नारी । भईं हृदयँ हरषित सुख भारी ॥
जा दिन तें हरि गर्भहिं आए । सकल लोक सुख संपति छाए ॥३॥
मंदिर महँ सब राजहिं रानी । सोभा सील तेज की खानीं ॥
सुख जुत कछुक काल चलि गयऊ। जेहिं प्रभु प्रगट सो अवसर भयऊ ॥४॥
(दोहा)
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल ।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल ॥ १९० ॥