Monday, 16 September, 2024

Ram cry at Sita’s absence in Panchvati

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Ram cry at Sita’s absence in Panchvati

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पंचवटी में सीता को न देखकर राम शोकमग्न
 
रघुपति अनुजहि आवत देखी । बाहिज चिंता कीन्हि बिसेषी ॥
जनकसुता परिहरिहु अकेली । आयहु तात बचन मम पेली ॥१॥
 
निसिचर निकर फिरहिं बन माहीं । मम मन सीता आश्रम नाहीं ॥
गहि पद कमल अनुज कर जोरी । कहेउ नाथ कछु मोहि न खोरी ॥२॥
 
अनुज समेत गए प्रभु तहवाँ । गोदावरि तट आश्रम जहवाँ ॥
आश्रम देखि जानकी हीना । भए बिकल जस प्राकृत दीना ॥३॥
 
हा गुन खानि जानकी सीता । रूप सील ब्रत नेम पुनीता ॥
लछिमन समुझाए बहु भाँती । पूछत चले लता तरु पाँती ॥४॥
 
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी । तुम्ह देखी सीता मृगनैनी ॥
खंजन सुक कपोत मृग मीना । मधुप निकर कोकिला प्रबीना ॥५॥
 
कुंद कली दाड़िम दामिनी । कमल सरद ससि अहिभामिनी ॥
बरुन पास मनोज धनु हंसा । गज केहरि निज सुनत प्रसंसा ॥६॥
 
श्रीफल कनक कदलि हरषाहीं । नेकु न संक सकुच मन माहीं ॥
सुनु जानकी तोहि बिनु आजू । हरषे सकल पाइ जनु राजू ॥७॥
 
किमि सहि जात अनख तोहि पाहीं  । प्रिया बेगि प्रगटसि कस नाहीं ॥
एहि बिधि खौजत बिलपत स्वामी । मनहुँ महा बिरही अति कामी ॥८॥
 
पूरनकाम राम सुख रासी । मनुज चरित कर अज अबिनासी ॥
आगे परा गीधपति देखा । सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा ॥९॥
 
(दोहा)
कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रधुबीर ।
निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर ॥ ३० ॥

 

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