श्रीराम ने हनुमान को अपनी मुद्रिका दी
सुनहु नील अंगद हनुमाना । जामवंत मतिधीर सुजाना ॥
सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू । सीता सुधि पूँछेउ सब काहू ॥१॥
मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु । रामचंद्र कर काजु सँवारेहु ॥
भानु पीठि सेइअ उर आगी । स्वामिहि सर्ब भाव छल त्यागी ॥२॥
तजि माया सेइअ परलोका । मिटहिं सकल भव संभव सोका ॥
देह धरे कर यह फलु भाई । भजिअ राम सब काम बिहाई ॥३॥
सोइ गुनग्य सोई बड़भागी । जो रघुबीर चरन अनुरागी ॥
आयसु मागि चरन सिरु नाई । चले हरषि सुमिरत रघुराई ॥४॥
पाछें पवन तनय सिरु नावा । जानि काज प्रभु निकट बोलावा ॥
परसा सीस सरोरुह पानी । करमुद्रिका दीन्हि जन जानी ॥५॥
बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु । कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु ॥
हनुमत जन्म सुफल करि माना । चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना ॥६॥
जद्यपि प्रभु जानत सब बाता । राजनीति राखत सुरत्राता ॥७॥
(दोहा)
चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह ।
राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह ॥ २३ ॥