राम की सलाह
तात तुम्हारि मोरि परिजन की । चिंता गुरहि नृपहि घर बन की ॥
माथे पर गुर मुनि मिथिलेसू । हमहि तुम्हहि सपनेहुँ न कलेसू ॥१॥
मोर तुम्हार परम पुरुषारथु । स्वारथु सुजसु धरमु परमारथु ॥
पितु आयसु पालिहिं दुहु भाई । लोक बेद भल भूप भलाई ॥२॥
गुर पितु मातु स्वामि सिख पालें । चलेहुँ कुमग पग परहिं न खालें ॥
अस बिचारि सब सोच बिहाई । पालहु अवध अवधि भरि जाई ॥३॥
देसु कोसु परिजन परिवारू । गुर पद रजहिं लाग छरुभारू ॥
तुम्ह मुनि मातु सचिव सिख मानी । पालेहु पुहुमि प्रजा रजधानी ॥४॥
(दोहा)
मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक ।
पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक ॥ ३१५ ॥