वर्षाऋतु में राम ने प्रवर्षण पर्वत की गुफा में आश्रय लिया
उमा राम सम हित जग माहीं । गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं ॥
सुर नर मुनि सब कै यह रीती । स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती ॥१॥
बालि त्रास ब्याकुल दिन राती । तन बहु ब्रन चिंताँ जर छाती ॥
सोइ सुग्रीव कीन्ह कपिराऊ । अति कृपाल रघुबीर सुभाऊ ॥२॥
जानतहुँ अस प्रभु परिहरहीं । काहे न बिपति जाल नर परहीं ॥
पुनि सुग्रीवहि लीन्ह बोलाई । बहु प्रकार नृपनीति सिखाई ॥३॥
कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा । पुर न जाउँ दस चारि बरीसा ॥
गत ग्रीषम बरषा रितु आई । रहिहउँ निकट सैल पर छाई ॥४॥
अंगद सहित करहु तुम्ह राजू । संतत हृदय धरेहु मम काजू ॥
जब सुग्रीव भवन फिरि आए । रामु प्रबरषन गिरि पर छाए ॥५॥
(दोहा)
प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ ।
राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ ॥ १२ ॥