लक्ष्मण और परशुराम के संवाद में श्रीराम का हस्तक्षेप
(चौपाई)
कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा । को नहि जान बिदित संसारा ॥
माता पितहि उरिन भए नीकें । गुर रिनु रहा सोचु बड़ जीकें ॥१॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा । दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा ॥
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली । तुरत देउँ मैं थैली खोली ॥२॥
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा । हाय हाय सब सभा पुकारा ॥
भृगुबर परसु देखावहु मोही । बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही ॥३॥
मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े । द्विज देवता घरहि के बाढ़े ॥
अनुचित कहि सब लोग पुकारे । रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे ॥४॥
(दोहा)
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबर कोपु कृसानु ।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥ २७६ ॥