परशुराम का गुस्सा ठंडा करने के लिए राम का फिर हस्तक्षेप
(चौपाई)
अति बिनीत मृदु सीतल बानी । बोले रामु जोरि जुग पानी ॥
सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना । बालक बचनु करिअ नहिं काना ॥१॥
बररै बालक एकु सुभाऊ । इन्हहि न संत बिदूषहिं काऊ ॥
तेहिं नाहीं कछु काज बिगारा । अपराधी में नाथ तुम्हारा ॥२॥
कृपा कोपु बधु बँधब गोसाईं । मो पर करिअ दास की नाई ॥
कहिअ बेगि जेहि बिधि रिस जाई । मुनिनायक सोइ करौं उपाई ॥३॥
कह मुनि राम जाइ रिस कैसें । अजहुँ अनुज तव चितव अनैसें ॥
एहि के कंठ कुठारु न दीन्हा । तौ मैं काह कोपु करि कीन्हा ॥४॥
(दोहा)
गर्भ स्त्रवहिं अवनिप रवनि सुनि कुठार गति घोर ।
परसु अछत देखउँ जिअत बैरी भूपकिसोर ॥ २७९ ॥