राम-लक्ष्मण द्वारा यज्ञ की रक्षा, राम ने सुबाहु को मारा
(चौपाई)
प्रात कहा मुनि सन रघुराई । निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई ॥
होम करन लागे मुनि झारी । आपु रहे मख कीं रखवारी ॥१॥
सुनि मारीच निसाचर क्रोही । लै सहाय धावा मुनिद्रोही ॥
बिनु फर बान राम तेहि मारा । सत जोजन गा सागर पारा ॥२॥
पावक सर सुबाहु पुनि मारा । अनुज निसाचर कटकु सँघारा ॥
मारि असुर द्विज निर्मयकारी । अस्तुति करहिं देव मुनि झारी ॥३॥
तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया । रहे कीन्हि बिप्रन्ह पर दाया ॥
भगति हेतु बहु कथा पुराना । कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना ॥४॥
तब मुनि सादर कहा बुझाई । चरित एक प्रभु देखिअ जाई ॥
धनुषजग्य मुनि रघुकुल नाथा । हरषि चले मुनिबर के साथा ॥५॥
आश्रम एक दीख मग माहीं । खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं ॥
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी । सकल कथा मुनि कहा बिसेषी ॥६॥
(दोहा)
गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर ।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर ॥ २१० ॥