राम-लक्ष्मण सैर करके वापस विश्वामित्र के पास
(चौपाई)
हृदयँ सराहत सीय लोनाई । गुर समीप गवने दोउ भाई ॥
राम कहा सबु कौसिक पाहीं । सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं ॥१॥
सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही । पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही ॥
सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे । रामु लखनु सुनि भए सुखारे ॥२॥
करि भोजनु मुनिबर बिग्यानी । लगे कहन कछु कथा पुरानी ॥
बिगत दिवसु गुरु आयसु पाई । संध्या करन चले दोउ भाई ॥३॥
प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा । सिय मुख सरिस देखि सुखु पावा ॥
बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं । सीय बदन सम हिमकर नाहीं ॥४॥
(दोहा)
जनमु सिंधु पुनि बंधु बिषु दिन मलीन सकलंक ।
सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो रंक ॥ २३७ ॥