श्रीराम का हनुमान से मिलन
आगें चले बहुरि रघुराया । रिष्यमूक परवत निअराया ॥
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा । आवत देखि अतुल बल सींवा ॥ १॥
अति सभीत कह सुनु हनुमाना । पुरुष जुगल बल रूप निधाना ॥
धरि बटु रूप देखु तैं जाई । कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई ॥२॥
पठए बालि होहिं मन मैला । भागौं तुरत तजौं यह सैला ॥
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ । माथ नाइ पूछत अस भयऊ ॥३॥
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा । छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥
कठिन भूमि कोमल पद गामी । कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी ॥४॥
मृदुल मनोहर सुंदर गाता । सहत दुसह बन आतप बाता ॥
की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ । नर नारायन की तुम्ह दोऊ ॥५॥
(दोहा)
जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार ।
की तुम्ह अकिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार ॥ १ ॥