Sunday, 17 November, 2024

Ram reach Sage Agatsya’s ashram

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श्रीराम अगत्स्य ऋषि के आश्रम पहूँचे 
 
एवमस्तु करि रमानिवासा । हरषि चले कुभंज रिषि पासा ॥
बहुत दिवस गुर दरसन पाएँ । भए मोहि एहिं आश्रम आएँ ॥१॥
 
अब प्रभु संग जाउँ गुर पाहीं । तुम्ह कहँ नाथ निहोरा नाहीं ॥
देखि कृपानिधि मुनि चतुराई । लिए संग बिहसै द्वौ भाई ॥२॥
 
पंथ कहत निज भगति अनूपा । मुनि आश्रम पहुँचे सुरभूपा ॥
तुरत सुतीछन गुर पहिं गयऊ । करि दंडवत कहत अस भयऊ ॥३॥
 
नाथ कौसलाधीस कुमारा । आए मिलन जगत आधारा ॥
राम अनुज समेत बैदेही । निसि दिनु देव जपत हहु जेही ॥४॥
 
सुनत अगस्ति तुरत उठि धाए । हरि बिलोकि लोचन जल छाए ॥
मुनि पद कमल परे द्वौ भाई । रिषि अति प्रीति लिए उर लाई ॥५॥
 
सादर कुसल पूछि मुनि ग्यानी । आसन बर बैठारे आनी ॥
पुनि करि बहु प्रकार प्रभु पूजा । मोहि सम भाग्यवंत नहिं दूजा ॥६॥
 
जहँ लगि रहे अपर मुनि बृंदा । हरषे सब बिलोकि सुखकंदा ॥७॥
 
(दोहा)   
मुनि समूह महँ बैठे सन्मुख सब की ओर ।
सरद इंदु तन चितवत मानहुँ निकर चकोर ॥ १२ ॥

 

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