श्रीराम ने हनुमानजी को अयोध्या समाचार देने के लिए भेजा
प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई । धरि बटु रूप अवधपुर जाई ॥
भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु । समाचार लै तुम्ह चलि आएहु ॥१॥
तुरत पवनसुत गवनत भयउ । तब प्रभु भरद्वाज पहिं गयऊ ॥
नाना बिधि मुनि पूजा कीन्ही । अस्तुती करि पुनि आसिष दीन्ही ॥२॥
मुनि पद बंदि जुगल कर जोरी । चढ़ि बिमान प्रभु चले बहोरी ॥
इहाँ निषाद सुना प्रभु आए । नाव नाव कहँ लोग बोलाए ॥३॥
सुरसरि नाघि जान तब आयो । उतरेउ तट प्रभु आयसु पायो ॥
तब सीताँ पूजी सुरसरी । बहु प्रकार पुनि चरनन्हि परी ॥४॥
दीन्हि असीस हरषि मन गंगा । सुंदरि तव अहिवात अभंगा ॥
सुनत गुहा धायउ प्रेमाकुल । आयउ निकट परम सुख संकुल ॥५॥
प्रभुहि सहित बिलोकि बैदेही । परेउ अवनि तन सुधि नहिं तेही ॥
प्रीति परम बिलोकि रघुराई । हरषि उठाइ लियो उर लाई ॥६॥
(छंद)
लियो हृदयँ लाइ कृपा निधान सुजान रायँ रमापती ।
बैठारि परम समीप बूझी कुसल सो कर बीनती ।
अब कुसल पद पंकज बिलोकि बिरंचि संकर सेब्य जे ।
सुख धाम पूरनकाम राम नमामि राम नमामि ते ॥
सब भाँति अधम निषाद सो हरि भरत ज्यों उर लाइयो ।
मतिमंद तुलसीदास सो प्रभु मोह बस बिसराइयो ॥
यह रावनारि चरित्र पावन राम पद रतिप्रद सदा ।
कामादिहर बिग्यानकर सुर सिद्ध मुनि गावहिं मुदा ॥
(दोहा)
समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान ।
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान ॥ १२१(क) ॥
यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार ।
श्रीरघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार ॥ १२१(ख) ॥
। इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने षष्ठः सोपानः समाप्तः ।
॥ लंकाकाण्ड समाप्त ॥