राम ने विश्वामित्र के चरणों की सेवा की
(चौपाई)
निसि प्रबेस मुनि आयसु दीन्हा । सबहीं संध्याबंदनु कीन्हा ॥
कहत कथा इतिहास पुरानी । रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी ॥१॥
मुनिबर सयन कीन्हि तब जाई । लगे चरन चापन दोउ भाई ॥
जिन्ह के चरन सरोरुह लागी । करत बिबिध जप जोग बिरागी ॥२॥
तेइ दोउ बंधु प्रेम जनु जीते । गुर पद कमल पलोटत प्रीते ॥
बारबार मुनि अग्या दीन्ही । रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही ॥३॥
चापत चरन लखनु उर लाएँ । सभय सप्रेम परम सचु पाएँ ॥
पुनि पुनि प्रभु कह सोवहु ताता । पौढ़े धरि उर पद जलजाता ॥४॥
(दोहा)
उठे लखन निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान ॥
गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान ॥ २२६ ॥