श्रीराम मार्ग में दंडकारण्य और चित्रकूट रुके
तुरत बिमान तहाँ चलि आवा । दंडक बन जहँ परम सुहावा ॥
कुंभजादि मुनिनायक नाना । गए रामु सब कें अस्थाना ॥१॥
सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा । चित्रकूट आए जगदीसा ॥
तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा । चला बिमानु तहाँ ते चोखा ॥२॥
बहुरि राम जानकिहि देखाई । जमुना कलि मल हरनि सुहाई ॥
पुनि देखी सुरसरी पुनीता । राम कहा प्रनाम करु सीता ॥३॥
तीरथपति पुनि देखु प्रयागा । निरखत जन्म कोटि अघ भागा ॥
देखु परम पावनि पुनि बेनी । हरनि सोक हरि लोक निसेनी ॥४॥
पुनि देखु अवधपुरी अति पावनि । त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि ॥५॥
(दोहा)
सीता सहित अवध कहुँ कीन्ह कृपाल प्रनाम ।
सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम ॥ १२०(क) ॥
पुनि प्रभु आइ त्रिबेनीं हरषित मज्जनु कीन्ह ।
कपिन्ह सहित बिप्रन्ह कहुँ दान बिबिध बिधि दीन्ह ॥ १२०(ख) ॥