श्रीराम वानरयोद्धाओं को अपने साथ लेते है
अतिसय प्रीति देख रघुराई । लिन्हे सकल बिमान चढ़ाई ॥
मन महुँ बिप्र चरन सिरु नायो । उत्तर दिसिहि बिमान चलायो ॥१॥
चलत बिमान कोलाहल होई । जय रघुबीर कहइ सबु कोई ॥
सिंहासन अति उच्च मनोहर । श्री समेत प्रभु बैठै ता पर ॥२॥
राजत रामु सहित भामिनी । मेरु सृंग जनु घन दामिनी ॥
रुचिर बिमानु चलेउ अति आतुर । कीन्ही सुमन बृष्टि हरषे सुर ॥३॥
परम सुखद चलि त्रिबिध बयारी । सागर सर सरि निर्मल बारी ॥
सगुन होहिं सुंदर चहुँ पासा । मन प्रसन्न निर्मल नभ आसा ॥४॥
कह रघुबीर देखु रन सीता । लछिमन इहाँ हत्यो इँद्रजीता ॥
हनूमान अंगद के मारे । रन महि परे निसाचर भारे ॥५॥
कुंभकरन रावन द्वौ भाई । इहाँ हते सुर मुनि दुखदाई ॥६॥
(दोहा)
इहाँ सेतु बाँध्यो अरु थापेउँ सिव सुख धाम ।
सीता सहित कृपानिधि संभुहि कीन्ह प्रनाम ॥ ११९(क) ॥
जहँ जहँ कृपासिंधु बन कीन्ह बास बिश्राम ।
सकल देखाए जानकिहि कहे सबन्हि के नाम ॥ ११९(ख) ॥