श्रीराम शरणार्थी का हमेशा स्वागत करते है
कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं । जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥१॥
Koti bipra badh laagahi jaahoo Aae saran tajau nahi taahoo ।
Sanamukh hoi jeev mohi jabahee Janm koti agh naasahi tabahee ॥
पापवंत कर सहज सुभाऊ । भजहु मोर तेहि भाव न काऊ ॥
जौं पै दुष्टहृदय सोइ होई । मोरें सनमुख आव कि सोई ॥२॥
Paapavant kar sahaj subhaoo Bhajanu mor tehi bhaav na kaaoo ।
Jau pai dusht hriday soi hoi More sanamukh aav ki soi ॥
निर्मल मन जन सो मोहि पावा । मोहि कपट छल छिद्र न भावा ॥
भेद लेन पठवा दससीसा । तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा ॥३॥
Nirmal man jan so mohi paava Mohi kapat chhal chhidra na bhaava ।
Bhed len pathava dasaseesa Tabahu na kachu bhay haani kapeesa ॥
जग महुँ सखा निसाचर जेते । लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते ॥
जो सभीत आवा सरनाईं । राखिहउँ ताहि प्रान की नाईं ॥४॥
Jag mahu sakha nisaachar jet e Lachhimanu hanai nimish mahu te te ।
Jau sabheet aava saranaai Rakhihau taahi praan kee naai ॥
(दोहा)
उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत ।
जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत ॥ ४४ ॥
Ubhay bhaanti tehi aanahu hasi kah krupaaniket ।
Jay krupaal kahi kapi chale angad Hanoo samet ॥