श्रीराम की भक्ति का काकभुशुंडी का अनुरोध बिनु संतोष न काम नसाहीं । काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं ॥ राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा । थल बिहीन तरु कबहुँ कि ...
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રામાયણ
01-05-2023
Kakbhushundi recommend worship of Ram
01-05-2023
It is impossible to fully comprehand Ram’s greatness
श्रीराम की महिमा अपरंपार है निज मति सरिस नाथ मैं गाई । प्रभु प्रताप महिमा खगराई ॥ कहेउँ न कछु करि जुगुति बिसेषी । यह सब मैं निज नयनन्हि देखी ॥१॥ मह...
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01-05-2023
Uttar Kand Doha 92
श्रीराम की महिमा अपरंपार है अगाध सत कोटि पताला । समन कोटि सत सरिस कराला ॥ तीरथ अमित कोटि सम पावन । नाम अखिल अघ पूग नसावन ॥१॥ हिमगिरि कोटि अचल रघुबी...
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01-05-2023
How Kakbhushundi end up in crow’s body
काकभुशुंडी की कहानी – कौआ कैसे हुआ तुम्ह सर्बग्य तन्य तम पारा । सुमति सुसील सरल आचारा ॥ ग्यान बिरति बिग्यान निवासा । रघुनायक के तुम्ह प्रिय दासा ॥१...
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01-05-2023
The story of Kakbhushundi
काकभुशुंडी की कहानी गरुड़ गिरा सुनि हरषेउ कागा । बोलेउ उमा परम अनुरागा ॥ धन्य धन्य तव मति उरगारी । प्रस्न तुम्हारि मोहि अति प्यारी ॥१॥ सुनि तव प्रस्...
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01-05-2023
The story of Kakbhushundi’s previous birth
काकभुशुंडी के पूर्वजन्म की कहानी स्वारथ साँच जीव कहुँ एहा । मन क्रम बचन राम पद नेहा ॥ सोइ पावन सोइ सुभग सरीरा । जो तनु पाइ भजिअ रघुबीरा ॥१॥ राम बिम...
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01-05-2023
Kakbhushundi’s previous birth in Ayodhya
पूर्वजन्म में काकभुशुंडी अयोध्या में तेहि कलिजुग कोसलपुर जाई । जन्मत भयउँ सूद्र तनु पाई ॥ सिव सेवक मन क्रम अरु बानी । आन देव निंदक अभिमानी ॥१॥ धन म...
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01-05-2023
Kaliyug and its characteristics
कलियुग के लक्षण बरन धर्म नहिं आश्रम चारी । श्रुति बिरोध रत सब नर नारी ॥ द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन । कोउ नहिं मान निगम अनुसासन ॥१॥ मारग सोइ जा क...
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01-05-2023
Uttar Kand Doha 100
कलियुग के लक्षण पर त्रिय लंपट कपट सयाने । मोह द्रोह ममता लपटाने ॥ तेइ अभेदबादी ग्यानी नर । देखा में चरित्र कलिजुग कर ॥१॥ आपु गए अरु तिन्हहू घालहिं ...
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01-05-2023
Uttar Kand Doha 101
कलियुग के लक्षण (छंद)बहु दाम सँवारहिं धाम जती । बिषया हरि लीन्हि न रहि बिरती ॥ तपसी धनवंत दरिद्र गृही । कलि कौतुक तात न जात कही ॥१॥ कुलवंति निकारहि...
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01-05-2023
Uttar Kand Doha 102
कलियुग के लक्षण (छंद)अबला कच भूषन भूरि छुधा । धनहीन दुखी ममता बहुधा ॥ सुख चाहहिं मूढ़ न धर्म रता । मति थोरि कठोरि न कोमलता ॥१॥ नर पीड़ित रोग न भोग कह...
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