श्रीराम की पादुका सिंहासन पर स्थापित
सचिव सुसेवक भरत प्रबोधे । निज निज काज पाइ पाइ सिख ओधे ॥
पुनि सिख दीन्ह बोलि लघु भाई । सौंपी सकल मातु सेवकाई ॥१॥
भूसुर बोलि भरत कर जोरे । करि प्रनाम बय बिनय निहोरे ॥
ऊँच नीच कारजु भल पोचू । आयसु देब न करब सँकोचू ॥२॥
परिजन पुरजन प्रजा बोलाए । समाधानु करि सुबस बसाए ॥
सानुज गे गुर गेहँ बहोरी । करि दंडवत कहत कर जोरी ॥३॥
आयसु होइ त रहौं सनेमा । बोले मुनि तन पुलकि सपेमा ॥
समुझव कहब करब तुम्ह जोई । धरम सारु जग होइहि सोई ॥४॥
(दोहा)
सुनि सिख पाइ असीस बड़ि गनक बोलि दिनु साधि ।
सिंघासन प्रभु पादुका बैठारे निरुपाधि ॥ ३२३ ॥