साधु राजा प्रतापभानु को वरदान माँगने के लिए कहता है
(चौपाई)
कह तापस नृप ऐसेइ होऊ । कारन एक कठिन सुनु सोऊ ॥
कालउ तुअ पद नाइहि सीसा । एक बिप्रकुल छाड़ि महीसा ॥१॥
तपबल बिप्र सदा बरिआरा । तिन्ह के कोप न कोउ रखवारा ॥
जौं बिप्रन्ह सब करहु नरेसा । तौ तुअ बस बिधि बिष्नु महेसा ॥२॥
चल न ब्रह्मकुल सन बरिआई । सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई ॥
बिप्र श्राप बिनु सुनु महिपाला । तोर नास नहि कवनेहुँ काला ॥३॥
हरषेउ राउ बचन सुनि तासू । नाथ न होइ मोर अब नासू ॥
तव प्रसाद प्रभु कृपानिधाना । मो कहुँ सर्ब काल कल्याना ॥४॥
(दोहा)
एवमस्तु कहि कपटमुनि बोला कुटिल बहोरि ।
मिलब हमार भुलाब निज कहहु त हमहि न खोरि ॥ १६५ ॥