Sage Bhardwaj’s hospitality
By-Gujju01-05-2023
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भरद्वाज मुनि द्वारा रसाले का स्वागत
सुनि मुनि बचन भरत हिँय सोचू । भयउ कुअवसर कठिन सँकोचू ॥
जानि गरुइ गुर गिरा बहोरी । चरन बंदि बोले कर जोरी ॥१॥
सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा । परम धरम यहु नाथ हमारा ॥
भरत बचन मुनिबर मन भाए । सुचि सेवक सिष निकट बोलाए ॥२॥
चाहिए कीन्ह भरत पहुनाई । कंद मूल फल आनहु जाई ॥
भलेहीं नाथ कहि तिन्ह सिर नाए । प्रमुदित निज निज काज सिधाए ॥३॥
मुनिहि सोच पाहुन बड़ नेवता । तसि पूजा चाहिअ जस देवता ॥
सुनि रिधि सिधि अनिमादिक आई । आयसु होइ सो करहिं गोसाई ॥४॥
(दोहा)
राम बिरह ब्याकुल भरतु सानुज सहित समाज ।
पहुनाई करि हरहु श्रम कहा मुदित मुनिराज ॥ २१३ ॥