साधु राजा पर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करता है
(चौपाई)
कह नृप जे बिग्यान निधाना । तुम्ह सारिखे गलित अभिमाना ॥
सदा रहहि अपनपौ दुराएँ । सब बिधि कुसल कुबेष बनाएँ ॥१॥
तेहि तें कहहि संत श्रुति टेरें । परम अकिंचन प्रिय हरि केरें ॥
तुम्ह सम अधन भिखारि अगेहा । होत बिरंचि सिवहि संदेहा ॥२॥
जोसि सोसि तव चरन नमामी । मो पर कृपा करिअ अब स्वामी ॥
सहज प्रीति भूपति कै देखी । आपु बिषय बिस्वास बिसेषी ॥३॥
सब प्रकार राजहि अपनाई । बोलेउ अधिक सनेह जनाई ॥
सुनु सतिभाउ कहउँ महिपाला । इहाँ बसत बीते बहु काला ॥४॥
(दोहा)
अब लगि मोहि न मिलेउ कोउ मैं न जनावउँ काहु ।
लोकमान्यता अनल सम कर तप कानन दाहु ॥ १६१(क) ॥
(सोरठा)
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर ।
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ॥ १६१(ख) ॥