प्रतापभानु साधु की कहाँनियों से प्रभावित हो जाता है
(चौपाई)
जनि आचरुज करहु मन माहीं । सुत तप तें दुर्लभ कछु नाहीं ॥
तपबल तें जग सृजइ बिधाता । तपबल बिष्नु भए परित्राता ॥१॥
तपबल संभु करहिं संघारा । तप तें अगम न कछु संसारा ॥
भयउ नृपहि सुनि अति अनुरागा । कथा पुरातन कहै सो लागा ॥२॥
करम धरम इतिहास अनेका । करइ निरूपन बिरति बिबेका ॥
उदभव पालन प्रलय कहानी । कहेसि अमित आचरज बखानी ॥३॥
सुनि महिप तापस बस भयऊ । आपन नाम कहत तब लयऊ ॥
कह तापस नृप जानउँ तोही । कीन्हेहु कपट लाग भल मोही ॥४॥
(सोरठा)
सुनु महीस असि नीति जहँ तहँ नाम न कहहिं नृप ।
मोहि तोहि पर अति प्रीति सोइ चतुरता बिचारि तव ॥ १६३ ॥