संतो की गुणग्राही वृत्ति
(चौपाई)
खल अघ अगुन साधू गुन गाहा । उभय अपार उदधि अवगाहा ॥
तेहि तें कछु गुन दोष बखाने । संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने ॥ १ ॥
भलेउ पोच सब बिधि उपजाए । गनि गुन दोष बेद बिलगाए ॥
कहहिं बेद इतिहास पुराना । बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना ॥ २ ॥
दुख सुख पाप पुन्य दिन राती । साधु असाधु सुजाति कुजाती ॥
दानव देव ऊँच अरु नीचू । अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू ॥ ३ ॥
माया ब्रह्म जीव जगदीसा । लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा ॥
कासी मग सुरसरि क्रमनासा । मरु मारव महिदेव गवासा ॥ ४ ॥
सरग नरक अनुराग बिरागा । निगमागम गुन दोष बिभागा ॥ ५ ॥
(दोहा)
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार ।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार ॥ ६ ॥