शिवजी उमा के साथ कैलास पहूँचे
(चौपाई)
तुरत भवन आए गिरिराई । सकल सैल सर लिए बोलाई ॥
आदर दान बिनय बहुमाना । सब कर बिदा कीन्ह हिमवाना ॥१॥
जबहिं संभु कैलासहिं आए । सुर सब निज निज लोक सिधाए ॥
जगत मातु पितु संभु भवानी । तेही सिंगारु न कहउँ बखानी ॥२॥
करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा । गनन्ह समेत बसहिं कैलासा ॥
हर गिरिजा बिहार नित नयऊ । एहि बिधि बिपुल काल चलि गयऊ ॥३॥
तब जनमेउ षटबदन कुमारा । तारकु असुर समर जेहिं मारा ॥
आगम निगम प्रसिद्ध पुराना । षन्मुख जन्मु सकल जग जाना ॥४॥
(छंद)
जगु जान षन्मुख जन्मु कर्मु प्रतापु पुरुषारथु महा ।
तेहि हेतु मैं बृषकेतु सुत कर चरित संछेपहिं कहा ॥
यह उमा संगु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं ।
कल्यान काज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं ॥
(दोहा)
चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु ।
बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु ॥ १०३ ॥