रामकथा का महात्म्य
(चौपाई)
तदपि असंका कीन्हिहु सोई । कहत सुनत सब कर हित होई ॥
जिन्ह हरि कथा सुनी नहिं काना । श्रवन रंध्र अहिभवन समाना ॥१॥
नयनन्हि संत दरस नहिं देखा । लोचन मोरपंख कर लेखा ॥
ते सिर कटु तुंबरि समतूला । जे न नमत हरि गुर पद मूला ॥२॥
जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी । जीवत सव समान तेइ प्रानी ॥
जो नहिं करइ राम गुन गाना । जीह सो दादुर जीह समाना ॥३॥
कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती । सुनि हरिचरित न जो हरषाती ॥
गिरिजा सुनहु राम कै लीला । सुर हित दनुज बिमोहनसीला ॥४॥
(दोहा)
रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि ।
सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि ॥ ११३ ॥