सीता का स्वयंवर स्थल में आगमन
(चौपाई)
ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई । मन मोदकन्हि कि भूख बुताई ॥
सिख हमारि सुनि परम पुनीता । जगदंबा जानहु जियँ सीता ॥१॥
जगत पिता रघुपतिहि बिचारी । भरि लोचन छबि लेहु निहारी ॥
सुंदर सुखद सकल गुन रासी । ए दोउ बंधु संभु उर बासी ॥२॥
सुधा समुद्र समीप बिहाई । मृगजलु निरखि मरहु कत धाई ॥
करहु जाइ जा कहुँ जोई भावा । हम तौ आजु जनम फलु पावा ॥३॥
अस कहि भले भूप अनुरागे । रूप अनूप बिलोकन लागे ॥
देखहिं सुर नभ चढ़े बिमाना । बरषहिं सुमन करहिं कल गाना ॥४॥
(दोहा)
जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाई ।
चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं लवाईं ॥ २४६ ॥