सीता श्रीराम को विजयमाला अर्पित करती है
(चौपाई)
सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे । छबिगन मध्य महाछबि जैसें ॥
कर सरोज जयमाल सुहाई । बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई ॥१॥
तन सकोचु मन परम उछाहू । गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू ॥
जाइ समीप राम छबि देखी । रहि जनु कुँअरि चित्र अवरेखी ॥२॥
चतुर सखीं लखि कहा बुझाई । पहिरावहु जयमाल सुहाई ॥
सुनत जुगल कर माल उठाई । प्रेम बिबस पहिराइ न जाई ॥३॥
सोहत जनु जुग जलज सनाला । ससिहि सभीत देत जयमाला ॥
गावहिं छबि अवलोकि सहेली । सियँ जयमाल राम उर मेली ॥४॥
(सोरठा)
रघुबर उर जयमाल देखि देव बरिसहिं सुमन ।
सकुचे सकल भुआल जनु बिलोकि रबि कुमुदगन ॥ २६४ ॥