Saturday, 16 November, 2024

Sita like Chitrakoot

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सीता को चित्रकूट पसंद आया
 
राम संग सिय रहति सुखारी । पुर परिजन गृह सुरति बिसारी ॥
छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी । प्रमुदित मनहुँ चकोरकुमारी ॥१॥
 
नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी । हरषित रहति दिवस जिमि कोकी ॥
सिय मनु राम चरन अनुरागा । अवध सहस सम बनु प्रिय लागा ॥२॥
 
परनकुटी प्रिय प्रियतम संगा । प्रिय परिवारु कुरंग बिहंगा ॥
सासु ससुर सम मुनितिय मुनिबर । असनु अमिअ सम कंद मूल फर॥॥
 
नाथ साथ साँथरी सुहाई । मयन सयन सय सम सुखदाई ॥
लोकप होहिं बिलोकत जासू । तेहि कि मोहि सक बिषय बिलासू ॥४॥
 
(दोहा)   
सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु ।
रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु ॥ १४० ॥

 

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