Thursday, 14 November, 2024

Sita’s inimitable beauty

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Sita’s inimitable beauty

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सीता का अनुपम सौंदर्य
 
(चौपाई)
सिय सोभा नहिं जाइ बखानी । जगदंबिका रूप गुन खानी ॥
उपमा सकल मोहि लघु लागीं । प्राकृत नारि अंग अनुरागीं ॥१॥

सिय बरनिअ तेइ उपमा देई । कुकबि कहाइ अजसु को लेई ॥
जौ पटतरिअ तीय सम सीया । जग असि जुबति कहाँ कमनीया ॥२॥

गिरा मुखर तन अरध भवानी । रति अति दुखित अतनु पति जानी ॥
बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही । कहिअ रमासम किमि बैदेही ॥३॥

जौ छबि सुधा पयोनिधि होई । परम रूपमय कच्छप सोई ॥
सोभा रजु मंदरु सिंगारू । मथै पानि पंकज निज मारू ॥४॥

(दोहा)
एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल ।
तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय समतूल ॥ २४७ ॥

 

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