गुप्तचरो ने रावण को श्रीराम के बारे में बताया
तुरत नाइ लछिमन पद माथा । चले दूत बरनत गुन गाता ॥
कहत राम जसु लंकाँ आए । रावन चरन सीस तिन्ह नाए ॥१॥
Turat naai lachhiman pad maatha Chale doot baranat gun gaatha ।
Kahat Raam jasu Lanka aae Raavan charan sees tinh naae ॥
बिहसि दसानन पूँछी बाता । कहसि न सुक आपनि कुसलाता ॥
पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी । जाहि मृत्यु आई अति नेरी ॥२॥
Bihasi dasaanan poonchhee baata Kahasi na suk aapani kusalaata ।
Puni kahu khabari Bibheeshan keree Jaahi mryutu aai ati neree ॥
करत राज लंका सठ त्यागी । होइहि जव कर कीट अभागी ॥
पुनि कहु भालु कीस कटकाई । कठिन काल प्रेरित चलि आई ॥३॥
Karat raaj Lanka sath tyaagee Hoihi jav kar keet abhaagee ।
Puni kahu bhaalu kees katakaai Kathin kaal prerit chali aai ॥
जिन्ह के जीवन कर रखवारा । भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा ॥
कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी । जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी ॥४॥
Jinh ke jeevan kar rakhavaara Bhayau mrudul chit sindhu bichaara ।
Kahu tapasinh kai baat bahoree Jinh ke hriday traas ati moree ॥
(दोहा)
की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर ।
कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ॥ ५३ ॥
Kee bhai bhet ki firi gae shravan sujasu suni mor ।
Kahasi na ripu dal tej bal bahut chakit chit tor ॥