Sumantra depart for Ayodhya
By-Gujju01-05-2023
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सुमंत्र ने अयोध्या के लिए प्रस्थान किया
प्राननाथ प्रिय देवर साथा । बीर धुरीन धरें धनु भाथा ॥
नहिं मग श्रमु भ्रमु दुख मन मोरें । मोहि लगि सोचु करिअ जनि भोरें ॥१॥
सुनि सुमंत्रु सिय सीतलि बानी । भयउ बिकल जनु फनि मनि हानी ॥
नयन सूझ नहिं सुनइ न काना । कहि न सकइ कछु अति अकुलाना ॥२॥
राम प्रबोधु कीन्ह बहु भाँति । तदपि होति नहिं सीतलि छाती ॥
जतन अनेक साथ हित कीन्हे । उचित उतर रघुनंदन दीन्हे ॥३॥
मेटि जाइ नहिं राम रजाई । कठिन करम गति कछु न बसाई ॥
राम लखन सिय पद सिरु नाई । फिरेउ बनिक जिमि मूर गवाँई ॥४॥
(दोहा)
रथ हाँकेउ हय राम तन हेरि हेरि हिहिनाहिं ।
देखि निषाद बिषादबस धुनहिं सीस पछिताहिं ॥ ९९ ॥