Monday, 18 November, 2024

Sumitra give her consent

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राम के साथ वन में जाने के लिए सुमित्रा की अनुमति     
 
धीरजु धरेउ कुअवसर जानी । सहज सुह्द बोली मृदु बानी ॥
तात तुम्हारि मातु बैदेही । पिता रामु सब भाँति सनेही ॥१॥
 
अवध तहाँ जहँ राम निवासू । तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू ॥
जौ पै सीय रामु बन जाहीं । अवध तुम्हार काजु कछु नाहिं ॥२॥
 
गुर पितु मातु बंधु सुर साई । सेइअहिं सकल प्रान की नाईं ॥
रामु प्रानप्रिय जीवन जी के । स्वारथ रहित सखा सबही कै ॥३॥
 
पूजनीय प्रिय परम जहाँ तें । सब मानिअहिं राम के नातें ॥
अस जियँ जानि संग बन जाहू । लेहु तात जग जीवन लाहू ॥४॥
 
(दोहा) 
भूरि भाग भाजनु भयहु मोहि समेत बलि जाउँ ।
जौम तुम्हरें मन छाड़ि छलु कीन्ह राम पद ठाउँ ॥ ७४ ॥

 

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