Sunday, 17 November, 2024

The beauty of autumn

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शरद ऋतु की शोभा का वर्णन
 
सुखी मीन जे नीर अगाधा । जिमि हरि सरन न एकउ बाधा ॥
फूलें कमल सोह सर कैसा । निर्गुन ब्रम्ह सगुन भएँ जैसा ॥१॥
 
गुंजत मधुकर मुखर अनूपा । सुंदर खग रव नाना रूपा ॥
चक्रबाक मन दुख निसि पैखी । जिमि दुर्जन पर संपति देखी ॥२॥
 
चातक रटत तृषा अति ओही । जिमि सुख लहइ न संकरद्रोही ॥
सरदातप निसि ससि अपहरई । संत दरस जिमि पातक टरई ॥३॥
 
देखि इंदु चकोर समुदाई । चितवतहिं जिमि हरिजन हरि पाई ॥
मसक दंस बीते हिम त्रासा । जिमि द्विज द्रोह किएँ कुल नासा ॥४॥
 
(दोहा)
भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ ।
सदगुर मिले जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ ॥ १७ ॥

 

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