शिवजी को पाने के लिए उमा की तपश्चर्या
(चौपाई)
उर धरि उमा प्रानपति चरना । जाइ बिपिन लागीं तपु करना ॥
अति सुकुमार न तनु तप जोगू । पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू ॥१॥
नित नव चरन उपज अनुरागा । बिसरी देह तपहिं मनु लागा ॥
संबत सहस मूल फल खाए । सागु खाइ सत बरष गवाँए ॥२॥
कछु दिन भोजनु बारि बतासा । किए कठिन कछु दिन उपबासा ॥
बेल पाती महि परइ सुखाई । तीनि सहस संबत सोई खाई ॥३॥
पुनि परिहरे सुखानेउ परना । उमहि नाम तब भयउ अपरना ॥
देखि उमहि तप खीन सरीरा । ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा ॥४॥
(दोहा)
भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिजाकुमारि ।
परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि ॥ ७४ ॥