असफल प्रतियोगीयों की प्रतिक्रिया
(चौपाई)
तब सिय देखि भूप अभिलाषे । कूर कपूत मूढ़ मन माखे ॥
उठि उठि पहिरि सनाह अभागे । जहँ तहँ गाल बजावन लागे ॥१॥
लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ । धरि बाँधहु नृप बालक दोऊ ॥
तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई । जीवत हमहि कुअँरि को बरई ॥२॥
जौं बिदेहु कछु करै सहाई । जीतहु समर सहित दोउ भाई ॥
साधु भूप बोले सुनि बानी । राजसमाजहि लाज लजानी ॥३॥
बलु प्रतापु बीरता बड़ाई । नाक पिनाकहि संग सिधाई ॥
सोइ सूरता कि अब कहुँ पाई । असि बुधि तौ बिधि मुहँ मसि लाई ॥४॥
(दोहा)
देखहु रामहि नयन भरि तजि इरिषा मदु कोहु ।
लखन रोषु पावकु प्रबल जानि सलभ जनि होहु ॥ २६६ ॥