कुलगुरू वशिष्ठ द्वारा कुमारो का जातकर्म संस्कार
(चौपाई)
सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी । संभ्रम चलि आई सब रानी ॥
हरषित जहँ तहँ धाईं दासी । आनँद मगन सकल पुरबासी ॥१॥
दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना । मानहुँ ब्रह्मानंद समाना ॥
परम प्रेम मन पुलक सरीरा । चाहत उठत करत मति धीरा ॥२॥
जाकर नाम सुनत सुभ होई । मोरें गृह आवा प्रभु सोई ॥
परमानंद पूरि मन राजा । कहा बोलाइ बजावहु बाजा ॥३॥
गुर बसिष्ठ कहँ गयउ हँकारा । आए द्विजन सहित नृपद्वारा ॥
अनुपम बालक देखेन्हि जाई । रूप रासि गुन कहि न सिराई ॥४॥
(दोहा)
नंदीमुख सराध करि जातकरम सब कीन्ह ।
हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह ॥ १९३ ॥