विश्वामित्र असुरो के प्रतिकार हेतु सहायता के लिए महाराजा दशरथ के पास आते है
(चौपाई)
यह सब चरित कहा मैं गाई । आगिलि कथा सुनहु मन लाई ॥
बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी । बसहि बिपिन सुभ आश्रम जानी ॥१॥
जहँ जप जग्य मुनि करही । अति मारीच सुबाहुहि डरहीं ॥
देखत जग्य निसाचर धावहि । करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं ॥२॥
गाधितनय मन चिंता ब्यापी । हरि बिनु मरहि न निसिचर पापी ॥
तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा । प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा ॥३॥
एहुँ मिस देखौं पद जाई । करि बिनती आनौ दोउ भाई ॥
ग्यान बिराग सकल गुन अयना । सो प्रभु मै देखब भरि नयना ॥४॥
(दोहा)
बहुबिधि करत मनोरथ जात लागि नहिं बार ।
करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार ॥ २०६ ॥