युद्ध शुरू हुआ
कोट कँगूरन्हि सोहहिं कैसे । मेरु के सृंगनि जनु घन बैसे ॥
बाजहिं ढोल निसान जुझाऊ । सुनि धुनि होइ भटन्हि मन चाऊ ॥१॥
बाजहिं भेरि नफीरि अपारा । सुनि कादर उर जाहिं दरारा ॥
देखिन्ह जाइ कपिन्ह के ठट्टा । अति बिसाल तनु भालु सुभट्टा ॥२॥
धावहिं गनहिं न अवघट घाटा । पर्बत फोरि करहिं गहि बाटा ॥
कटकटाहिं कोटिन्ह भट गर्जहिं । दसन ओठ काटहिं अति तर्जहिं ॥३॥
उत रावन इत राम दोहाई । जयति जयति जय परी लराई ॥
निसिचर सिखर समूह ढहावहिं । कूदि धरहिं कपि फेरि चलावहिं ॥४॥
(छंद)
धरि कुधर खंड प्रचंड कर्कट भालु गढ़ पर डारहीं ।
झपटहिं चरन गहि पटकि महि भजि चलत बहुरि पचारहीं ॥
अति तरल तरुन प्रताप तरपहिं तमकि गढ़ चढ़ि चढ़ि गए ।
कपि भालु चढ़ि मंदिरन्ह जहँ तहँ राम जसु गावत भए ॥
(दोहा)
एकु एकु निसिचर गहि पुनि कपि चले पराइ ।
ऊपर आपु हेठ भट गिरहिं धरनि पर आइ ॥ ४१ ॥