अंगद को युवराजपद दिया
राम बालि निज धाम पठावा । नगर लोग सब ब्याकुल धावा ॥
नाना बिधि बिलाप कर तारा । छूटे केस न देह सँभारा ॥१॥
तारा बिकल देखि रघुराया । दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया ॥
छिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित अति अधम सरीरा ॥२॥
प्रगट सो तनु तव आगें सोवा । जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा ॥
उपजा ग्यान चरन तब लागी । लीन्हेसि परम भगति बर मागी ॥३॥
उमा दारु जोषित की नाई । सबहि नचावत रामु गोसाई ॥
तब सुग्रीवहि आयसु दीन्हा । मृतक कर्म बिधिबत सब कीन्हा ॥४॥
राम कहा अनुजहि समुझाई । राज देहु सुग्रीवहि जाई ॥
रघुपति चरन नाइ करि माथा । चले सकल प्रेरित रघुनाथा ॥५॥
(दोहा)
लछिमन तुरत बोलाए पुरजन बिप्र समाज ।
राजु दीन्ह सुग्रीव कहँ अंगद कहँ जुबराज ॥ ११ ॥