राजा प्रतापभानु के राज्य पर हमला, सर्वनाश
(चौपाई)
अस कहि सब महिदेव सिधाए । समाचार पुरलोगन्ह पाए ॥
सोचहिं दूषन दैवहि देहीं । बिचरत हंस काग किय जेहीं ॥१॥
उपरोहितहि भवन पहुँचाई । असुर तापसहि खबरि जनाई ॥
तेहिं खल जहँ तहँ पत्र पठाए । सजि सजि सेन भूप सब धाए ॥२॥
घेरेन्हि नगर निसान बजाई । बिबिध भाँति नित होई लराई ॥
जूझे सकल सुभट करि करनी । बंधु समेत परेउ नृप धरनी ॥३॥
सत्यकेतु कुल कोउ नहिं बाँचा । बिप्रश्राप किमि होइ असाँचा ॥
रिपु जिति सब नृप नगर बसाई । निज पुर गवने जय जसु पाई ॥४॥
(दोहा)
भरद्वाज सुनु जाहि जब होइ बिधाता बाम ।
धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम ॥ १७५ ॥