अयोध्यावासीओं की प्रतिक्रिया
एक बिधातहिं दूषनु देंहीं । सुधा देखाइ दीन्ह बिषु जेहीं ॥
खरभरु नगर सोचु सब काहू । दुसह दाहु उर मिटा उछाहू ॥१॥
बिप्रबधू कुलमान्य जठेरी । जे प्रिय परम कैकेई केरी ॥
लगीं देन सिख सीलु सराही । बचन बानसम लागहिं ताही ॥२॥
भरतु न मोहि प्रिय राम समाना । सदा कहहु यहु सबु जगु जाना ॥
करहु राम पर सहज सनेहू । केहिं अपराध आजु बनु देहू ॥३॥
कबहुँ न कियहु सवति आरेसू । प्रीति प्रतीति जान सबु देसू ॥
कौसल्याँ अब काह बिगारा । तुम्ह जेहि लागि बज्र पुर पारा ॥४॥
(दोहा)
सीय कि पिय सँगु परिहरिहि लखनु कि रहिहहिं धाम ।
राजु कि भूँजब भरत पुर नृपु कि जीहि बिनु राम ॥ ४९ ॥