श्रीराम की महिमा
(चौपाई)
कासीं मरत जंतु अवलोकी । जासु नाम बल करउँ बिसोकी ॥
सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी । रघुबर सब उर अंतरजामी ॥१॥
बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं । जनम अनेक रचित अघ दहहीं ॥
सादर सुमिरन जे नर करहीं । भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥२॥
राम सो परमातमा भवानी । तहँ भ्रम अति अबिहित तव बानी ॥
अस संसय आनत उर माहीं । ग्यान बिराग सकल गुन जाहीं ॥३॥
सुनि सिव के भ्रम भंजन बचना । मिटि गै सब कुतरक कै रचना ॥
भइ रघुपति पद प्रीति प्रतीती । दारुन असंभावना बीती ॥४॥
(दोहा)
पुनि पुनि प्रभु पद कमल गहि जोरि पंकरुह पानि ।
बोली गिरिजा बचन बर मनहुँ प्रेम रस सानि ॥ ११९ ॥