प्रतापभानु की कहानी
(चौपाई)
भूप प्रतापभानु बल पाई । कामधेनु भै भूमि सुहाई ॥
सब दुख बरजित प्रजा सुखारी । धरमसील सुंदर नर नारी ॥१॥
सचिव धरमरुचि हरि पद प्रीती । नृप हित हेतु सिखव नित नीती ॥
गुर सुर संत पितर महिदेवा । करइ सदा नृप सब कै सेवा ॥२॥
भूप धरम जे बेद बखाने । सकल करइ सादर सुख माने ॥
दिन प्रति देह बिबिध बिधि दाना । सुनहु सास्त्र बर बेद पुराना ॥३॥
नाना बापीं कूप तड़ागा । सुमन बाटिका सुंदर बागा ॥
बिप्रभवन सुरभवन सुहाए । सब तीरथन्ह बिचित्र बनाए ॥४॥
(दोहा)
जँह लगि कहे पुरान श्रुति एक एक सब जाग ।
बार सहस्त्र सहस्त्र नृप किए सहित अनुराग ॥ १५५ ॥