प्रतापभानु की कहानी
(चौपाई)
नृप हितकारक सचिव सयाना । नाम धरमरुचि सुक्र समाना ॥
सचिव सयान बंधु बलबीरा । आपु प्रतापपुंज रनधीरा ॥१॥
सेन संग चतुरंग अपारा । अमित सुभट सब समर जुझारा ॥
सेन बिलोकि राउ हरषाना । अरु बाजे गहगहे निसाना ॥२॥
बिजय हेतु कटकई बनाई । सुदिन साधि नृप चलेउ बजाई ॥
जँह तहँ परीं अनेक लराईं । जीते सकल भूप बरिआई ॥३॥
सप्त दीप भुजबल बस कीन्हे । लै लै दंड छाड़ि नृप दीन्हें ॥
सकल अवनि मंडल तेहि काला । एक प्रतापभानु महिपाला ॥४॥
(दोहा)
स्वबस बिस्व करि बाहुबल निज पुर कीन्ह प्रबेसु ।
अरथ धरम कामादि सुख सेवइ समयँ नरेसु ॥ १५४ ॥