कुंवरो की बाललीलाओं का वर्णन
(चौपाई)
बंधु सखा संग लेहिं बोलाई । बन मृगया नित खेलहिं जाई ॥
पावन मृग मारहिं जियँ जानी । दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी ॥१॥
जे मृग राम बान के मारे । ते तनु तजि सुरलोक सिधारे ॥
अनुज सखा सँग भोजन करहीं । मातु पिता अग्या अनुसरहीं ॥२॥
जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा । करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा ॥
बेद पुरान सुनहिं मन लाई । आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई ॥३॥
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहिं माथा ॥
आयसु मागि करहिं पुर काजा । देखि चरित हरषइ मन राजा ॥४॥
(दोहा)
ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप ।
भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप ॥ २०५ ॥