कुंवरो की बाललीलाओं का वर्णन
(चौपाई)
बालचरित अति सरल सुहाए । सारद सेष संभु श्रुति गाए ॥
जिन कर मन इन्ह सन नहिं राता । ते जन बंचित किए बिधाता ॥१॥
भए कुमार जबहिं सब भ्राता । दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता ॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई । अलप काल बिद्या सब आई ॥२॥
जाकी सहज स्वास श्रुति चारी । सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी ॥
बिद्या बिनय निपुन गुन सीला । खेलहिं खेल सकल नृपलीला ॥३॥
करतल बान धनुष अति सोहा । देखत रूप चराचर मोहा ॥
जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई । थकित होहिं सब लोग लुगाई ॥४॥
(दोहा)
कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल ।
प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल ॥ २०४ ॥