राम-लक्ष्मण को देखकर मिथिलावासीयों की प्रतिक्रिया
(चौपाई)
देखि राम छबि कोउ एक कहई । जोगु जानकिहि यह बरु अहई ॥
जौ सखि इन्हहि देख नरनाहू । पन परिहरि हठि करइ बिबाहू ॥१॥
कोउ कह ए भूपति पहिचाने । मुनि समेत सादर सनमाने ॥
सखि परंतु पनु राउ न तजई । बिधि बस हठि अबिबेकहि भजई ॥२॥
कोउ कह जौं भल अहइ बिधाता । सब कहँ सुनिअ उचित फलदाता ॥
तौ जानकिहि मिलिहि बरु एहू । नाहिन आलि इहाँ संदेहू ॥३॥
जौ बिधि बस अस बनै सँजोगू । तौ कृतकृत्य होइ सब लोगू ॥
सखि हमरें आरति अति तातें । कबहुँक ए आवहिं एहि नातें ॥४॥
(दोहा)
नाहिं त हम कहुँ सुनहु सखि इन्ह कर दरसनु दूरि ।
यह संघटु तब होइ जब पुन्य पुराकृत भूरि ॥ २२२ ॥