लग्न का वर्णन
(चौपाई)
सिय सुंदरता बरनि न जाई । लघु मति बहुत मनोहरताई ॥
आवत दीखि बरातिन्ह सीता ॥ रूप रासि सब भाँति पुनीता ॥१॥
सबहि मनहिं मन किए प्रनामा । देखि राम भए पूरनकामा ॥
हरषे दसरथ सुतन्ह समेता । कहि न जाइ उर आनँदु जेता ॥२॥
सुर प्रनामु करि बरसहिं फूला । मुनि असीस धुनि मंगल मूला ॥
गान निसान कोलाहलु भारी । प्रेम प्रमोद मगन नर नारी ॥३॥
एहि बिधि सीय मंडपहिं आई । प्रमुदित सांति पढ़हिं मुनिराई ॥
तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू । दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह अचारू ॥४॥
(छंद)
आचारु करि गुर गौरि गनपति मुदित बिप्र पुजावहीं ।
सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं ॥
मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं ।
भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक रहैं ॥ १ ॥
कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो ।
एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु दियो ॥
सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि परै ॥
मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै ॥ २ ॥
(दोहा)
होम समय तनु धरि अनलु अति सुख आहुति लेहिं ।
बिप्र बेष धरि बेद सब कहि बिबाह बिधि देहिं ॥ ३२३ ॥