लग्न का वर्णन
(चौपाई)
स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन । सोभा कोटि मनोज लजावन ॥
जावक जुत पद कमल सुहाए । मुनि मन मधुप रहत जिन्ह छाए ॥१॥
पीत पुनीत मनोहर धोती । हरति बाल रबि दामिनि जोती ॥
कल किंकिनि कटि सूत्र मनोहर । बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर ॥२॥
पीत जनेउ महाछबि देई । कर मुद्रिका चोरि चितु लेई ॥
सोहत ब्याह साज सब साजे । उर आयत उरभूषन राजे ॥३॥
पिअर उपरना काखासोती । दुहुँ आँचरन्हि लगे मनि मोती ॥
नयन कमल कल कुंडल काना । बदनु सकल सौंदर्ज निधाना ॥४॥
सुंदर भृकुटि मनोहर नासा । भाल तिलकु रुचिरता निवासा ॥
सोहत मौरु मनोहर माथे । मंगलमय मुकुता मनि गाथे ॥५॥
(छंद)
गाथे महामनि मौर मंजुल अंग सब चित चोरहीं ।
पुर नारि सुर सुंदरीं बरहि बिलोकि सब तिन तोरहीं ॥
मनि बसन भूषन वारि आरति करहिं मंगल गावहिं ।
सुर सुमन बरिसहिं सूत मागध बंदि सुजसु सुनावहीं ॥ १ ॥
कोहबरहिं आने कुँअर कुँअरि सुआसिनिन्ह सुख पाइ कै ।
अति प्रीति लौकिक रीति लागीं करन मंगल गाइ कै ॥
लहकौरि गौरि सिखाव रामहि सीय सन सारद कहैं ।
रनिवासु हास बिलास रस बस जन्म को फलु सब लहैं ॥ २ ॥
निज पानि मनि महुँ देखिअति मूरति सुरूपनिधान की ।
चालति न भुजबल्ली बिलोकनि बिरह भय बस जानकी ॥
कौतुक बिनोद प्रमोदु प्रेमु न जाइ कहि जानहिं अलीं ।
बर कुअँरि सुंदर सकल सखीं लवाइ जनवासेहि चलीं ॥ ३ ॥
तेहि समय सुनिअ असीस जहँ तहँ नगर नभ आनँदु महा ।
चिरु जिअहुँ जोरीं चारु चारयो मुदित मन सबहीं कहा ॥
जोगीन्द्र सिद्ध मुनीस देव बिलोकि प्रभु दुंदुभि हनी ।
चले हरषि बरषि प्रसून निज निज लोक जय जय जय भनी ॥ ४ ॥
(दोहा)
सहित बधूटिन्ह कुअँर सब तब आए पितु पास ।
सोभा मंगल मोद भरि उमगेउ जनु जनवास ॥ ३२७ ॥