लग्न का वर्णन
(चौपाई)
पुनि जेवनार भई बहु भाँती । पठए जनक बोलाइ बराती ॥
परत पाँवड़े बसन अनूपा । सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा ॥१॥
सादर सबके पाय पखारे । जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे ॥
धोए जनक अवधपति चरना । सीलु सनेहु जाइ नहिं बरना ॥२॥
बहुरि राम पद पंकज धोए । जे हर हृदय कमल महुँ गोए ॥
तीनिउ भाई राम सम जानी । धोए चरन जनक निज पानी ॥३॥
आसन उचित सबहि नृप दीन्हे । बोलि सूपकारी सब लीन्हे ॥
सादर लगे परन पनवारे । कनक कील मनि पान सँवारे ॥४॥
(दोहा)
सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत ।
छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत ॥ ३२८ ॥